भारतीय लेखक-शिविर एवम् आचार्य विद्यानिवास मिश्र स्मृति संवाद
(१४-१८ जनवरी, २००९)
१४ जनवरी, २००९
उद्घाटन-सत्र
पतितपावनी माँ गंगा के मोक्षदायी तट पर अवस्थित भारत के सांस्कृतिक तीर्थस्थल एवम् बाबा विश्वनाथ की पवित्र नगरी काशी के ‘रथयात्रा’ स्थित ‘कन्हैयालाल गुप्ता मोतीवाला स्मृति भवन’ के सभागार में ‘विद्याश्री न्यास तथा उत्तरप्रदेश भाषा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय लेखक शिविर’ और ‘आचार्य विद्यानिवास मिश्र स्मृति-संवाद’ के वैचारिक उत्सव में पाँच दिनों तक विभिन्न सत्रों में आये भाषा-साहित्य के मर्मज्ञों, शब्द-शिल्पियों, रचनाकारों, संस्कृति कर्मियों, समीक्षकों-आलोचकों एवम् विविध पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादकों ने मिश्र जी के व्यक्तित्व-कृतित्व के आलोक में साहित्य के साथ-साथ भारत की संस्कृति तथा चिंतन-परम्परा के विभिन्न आयामों पर उन्मुक्त विचार-विमर्श किया।
पूर्वाह्न १०.०० बजे, सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ. गोपाल-चतुर्वेदी, कार्यकारी अध्यक्ष उ.प्र. भाषा-संस्थान, लखनऊ की अध्यक्षता में सम्पन्न उद्घाटन-सत्र के मुख्य अतिथि थे डॉ. अवधराम, कुलपति, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी तथा इसका संचालन किया ‘विश्व भोजपुरी सम्मेलन’ के अन्तरराष्ट्रीय महासचिव डॉ. अरुणेन नीरन ने। डॉ. महेश्वर मिश्र, अध्यक्ष विद्याश्री न्यास ने स्वागत-वक्तव्य दिया। अपने सम्बोधन में डॉ. अवधराम ने मिश्र जी के गँवई मन, भाषा-साहित्य की मर्मज्ञता, जीवन-दृष्टि तथा समाज-चेतना पर प्रकाश डाला। डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि वे प्रगतिशील परम्परा के समर्थक, सम्पोषक, रक्षक और संवद्र्धक थे। उनकी साधना ने भारतीय संस्कृति और परम्परा को वैभवशाली बनाया है, जो उनके जीवन-दर्शन का अभिन्न अंग थी।
इस अवसर पर विद्याश्री न्यास की ओर से लब्धप्रतिष्ठ गीतकार श्रीकृष्ण तिवारी को ‘लोककवि-सम्मान’ से समादृत किया गया तथा अतिथियों द्वारा श्री मिश्र जी की बहुचर्चित कृति ‘हिन्दू धर्म, सनातन की खोज’ के डॉ. रत्ना लाहिड़ी द्वारा किये गये अंग्रेजी अनुवाद द हिन्दू वे : अ सर्च फॉर द इटर्नल’ का लोकार्पण भी किया गया। इसके अतिरिक्त फाउंडेशन्स आव इण्डियान एस्थेटिक्स तथा ‘प्रâाम द गंगा टु द मेडीटेरियन’ शीर्षक दो अन्य ग्रन्थों का भी लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर पूर्वोत्तर भारत की छात्राओं के स्वागत-गान ने श्रोताओं को अभिभूत कर दिया था।